लोकेशन:-- हरिद्वार उत्तराखंड
स्लग:--विचार गोष्ठी में पहुंचे रविदास धाम के संस्थापक स्वामी राकेशानन्द
एंकर:--बिजनौर बैराज गंगा तट पर मुख्य संतो की एक दिवसीए संत गोष्ठी हुई जिसमे संत शिरोमणि गुरु रविदास धाम गुरु गद्दी ,ज्योति नगर अंम्बूवला हरिद्वार के सस्थापक संत राकेशान्द जी उपस्थित हुए।।
सभा में प्रेम करूणा और समता के मूल की साधना व वर्तमान भौतिकता पर कल्याणर्थ प्रार्थना हुई।
दयाल वाला रविदास आश्रम बिजनौर से पधारे संत राजदास जी ने राकेशान्द जी से पूछा कि
स्वामी जी कृपा हमे यह बताएं कि संत शिरोमणि रविदास जी के सर पर ताज क्यों नही है।।
स्वामी राकेशान्द जी ने कहां कि भगवान रविदास जी प्रेम करूणा और समता के उपासक थे ये ही उनकी शिक्षा थी,व भय लोभ लालच रूपि समस्त इंद्रिया उनकी गुलाम थी।।
सम्यंकता की उच्च पराकाष्ठा के धनि को भला कौन क्यां भेट कर सकता है,,जो स्वंय ही स्वंय के भगवान हो जो शंहशहो के शंहशा हों जिनके चरणों में सम्राटो के ताज झुकते हो,जिनके चरणों में बादशाहों ने अपने ताज रख दिए हो।जो उनके चरणों में चढ़ते हो तो भला ताज उनके सर पर कैसे रखा जा सकता है।।
ताज या पगड़ी उनके चरणों में चढ़ती है इसालिए उनके सर पर ताज नहीं।।
उन्ही की रहमत से दुनियावी ताज सलामत है।।
इतना कहकर
वे बोले,,,,,,कि
आप सबके अन्तस में बैठे प्रमात्मा को प्रणाम करता हूँ यह कहकर स्वामी जी मौन हो गए।।
इतना सुन गोष्ठी में मौजूद सभी संतो ने स्वामी जी का जयकारा लगाया उनके जयकारो से आकाश गूज उठा।। विचार गोष्ठी स्वामी राकेशानन्द जी के उध्बोधन पर सम्पन्न हुई। गोष्ठी में उपस्थित सभी संतो ने स्वामी राकेशानन्द से कई आध्यात्मिक प्रश्न किये सभी प्रश्नों का उत्तर स्वामी जी ने बड़ी ही मधुरता से दिया गोष्ठी के उपस्थित सभी संत अपने प्रश्नों का उत्तर पाकर प्रसन्न हुए और स्वामी जी के जयकारों व *सत नाम सत नाम* मंत्र के साथ गोष्ठी का समापन हुआ
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